संक्रान्ति पर किया गया श्राद्ध अनन्त काल तक के लिए स्थायी होता है, इसी
प्रकार जन्म के दिन एवं कतिपय नक्षत्रों में श्राद्ध करना चाहिए। आपस्तम्ब
धर्मसूत्र , अनुशासन पर्व , वायु पुराण , याज्ञवल्क्य , ब्रह्म पुराण , विष्णु धर्मसूत्र , कूर्म पुराण , ब्रह्मण्ड.
ने कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से अमावस्या तक किये गये श्राद्धों के
फलों का उल्लेख किया है। ये फलसूचियाँ एक-दूसरी से पूर्णतया नहीं मिलतीं।
आपस्तम्ब द्वारा प्रस्तुत सूची, जो सम्भवत: अत्यन्त प्राचीन है, यहाँ पर
प्रस्तुत की जा रही है–कृष्णपक्ष की प्रत्येक तिथि में किया गया श्राद्ध
क्रम से अधोलिखित फल देता है–संतान (मुख्यत: कन्याएँ कृष्णपक्ष की प्रतिपदा
को), पुत्र जो चोर होंगे, पुत्र जो वेदज्ञ और वैदिक व्रतों को करने वाले
होंगे, पुत्र जिन्हें छोटे घरेलू पशु प्राप्त होंगे, बहुत से पुत्र जो
(अपनी विद्या से) यशस्वी होंगे और कर्ता संतानहीन नहीं मरेगा, बहुत बड़ा
यात्री एवं जुआरी, कृषि में सफलता, समृद्धि, एक खुर वाले पशु, व्यापार में
लाभ, काला लौह, काँसा एवं सीसा, पशु से युक्त पुत्र, बहुत से पुत्र एवं
बहुत से मित्र तथा शीघ्र ही मर जाने वाले सुन्दर लड़के, शस्त्रों में सफलता
(चतुर्दशी को) एवं सम्पत्ति (अमावस्या को)। गार्ग्य
ने व्यवस्था दी है कि नन्दा, शुक्रवार, कृष्णपक्ष की त्रयोदशी, जन्म
नक्षत्र और इसके एक दिन पूर्व एवं पश्चात् वाले नक्षत्रों में श्राद्ध नहीं
करना चाहिए, क्योंकि पुत्र एवं सम्पत्ति के नष्ट हो जाने का डर होता है।
अनुशासन पर्व ने व्यवस्था दी है कि जो व्यक्ति त्रयोदशी को श्राद्ध करता है
वह पूर्वजों में श्रेष्ठ पद की प्राप्ति करता है। किन्तु उसके फलस्वरूप घर
के युवा व्यक्ति मर जाते हैं।
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