श्राद्ध (या सभी कृत्य) तीन कोटियों में विभाजित किये गये हैं; नित्य, नैमित्तिक एवं काम्य।
जिस प्रकार मास का कृष्ण पक्ष शुक्ल पक्ष की अपेक्षा अच्छा समझा जाता है, तो उसी प्रकार उपराह्न को मध्याह्न से अच्छा माना जाता है। अनुशानपर्व ने भी ऐसा ही कहा है। याज्ञवल्क्य , मार्कण्डेय पुराण एवं वराह पुराण ने एक स्थान पर श्राद्ध सम्पादन के कालों को निम्न रूप से रखा है–अमावस्या, अष्टका दिन, शुभ दिन (यथा–पुत्रोत्पत्ति दिवस), मास का कृष्ण पक्ष, दोनों अयन (वे दोनों दिन जब सूर्य उत्तर या दक्षिण की ओर जाना आरम्भ करता है), पर्याप्त समभारों (भात, दाल या मांस आदि सामग्रियों) की उपलब्धि, किसी योग्य ब्राह्मण का आगमन, विषुवत रेखा पर सूर्य का आगमन, एक राशि से दूसरी राशि में जाने वाले सूर्य के दिन, व्यतीपात, गजच्छाया नामक ज्योतिषसंधियाँ, चन्द्र और सूर्य ग्रहण तथा जब कर्मकर्ता के मन में तीव्र इच्छा का उदय (श्राद्ध करने के लिए) हो गया हो–यही काल श्राद्ध सम्पादन के हैं। मार्कण्डेय ने जोड़ा है कि तब श्राद्ध करना चाहिए जब व्यक्ति दु:स्वप्न देखे और सभी बुरे ग्रह उसके जन्म के नक्षत्र को प्रभावित कर दें। ग्रहण में श्राद्ध का उपयुक्त समय स्पर्शकाल है (अर्थात् जब ग्रहण का आरम्भ होता है); यह बात वृद्ध वसिष्ठ के एक श्लोक में आती है। ब्रह्मपुराण में याज्ञवल्क्य द्वारा सभी कालों एवं कुछ और कालों का वर्णन पाया जाता है। विष्णु धर्मसूत्र के मत से अमावस्या, तीन अष्टकाएँ एवं तीन अन्वष्टकाएँ, भाद्रपद के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी, जिस दिन चन्द्र मघा नक्षत्र में होता है, शरद एवं वसन्त श्राद्ध के लिए नित्य कालों के द्योतक हैं और जो भी व्यक्ति इन दिनों में श्राद्ध नहीं करता वह नरक में जाता है। विष्णु धर्मसूत्र का कहना है कि जब सूर्य एक राशि से दूसरा राशि में जाता है तो दोनों विषुवीय दिन, विशेषत: उत्तरायण एवं दक्षिणायन के दिन, व्यतीपात, कर्ता जन्म की राशि, पुत्रोत्पत्ति आदि के उत्सवों का काल–आदि काम्य काल हैं और इन अवसरों पर किया गया श्राद्ध (पितरों को) अनन्त आनन्द प्रदान करता है। कूर्म पुराण का कथन है कि काम्य श्राद्ध ब्राह्मणों के समय, सूर्य के अयनों के दिन एवं व्यतीपात पर करने चाहिए, तब वे (पितरों को) अपरिमित आनन्द देते हैं।
- वह श्राद्ध नित्य कहलाता है, जिसके लिए ऐसी व्यवस्था दी हुई हो कि वह किसी निश्चित अवसर पर किया जाए (यथा–आह्विक, अमावास्या के दिन वाला या अष्टका के दिन वाला)।
- जो ऐसे अवसर पर किया जाए जो कि अनिश्चित सा हो, यथा–पुत्रोत्पत्ति आदि पर, उसे नैमित्तिक कहा जाता है।
- जो किसी विशिष्ट फल के लिए किया जाए उसे काम्य कहते हैं; यथा–स्वर्ग, संतति आदि की प्राप्ति के लिए। कृत्तिका या रोहिणी पर किया गया श्राद्ध।
जिस प्रकार मास का कृष्ण पक्ष शुक्ल पक्ष की अपेक्षा अच्छा समझा जाता है, तो उसी प्रकार उपराह्न को मध्याह्न से अच्छा माना जाता है। अनुशानपर्व ने भी ऐसा ही कहा है। याज्ञवल्क्य , मार्कण्डेय पुराण एवं वराह पुराण ने एक स्थान पर श्राद्ध सम्पादन के कालों को निम्न रूप से रखा है–अमावस्या, अष्टका दिन, शुभ दिन (यथा–पुत्रोत्पत्ति दिवस), मास का कृष्ण पक्ष, दोनों अयन (वे दोनों दिन जब सूर्य उत्तर या दक्षिण की ओर जाना आरम्भ करता है), पर्याप्त समभारों (भात, दाल या मांस आदि सामग्रियों) की उपलब्धि, किसी योग्य ब्राह्मण का आगमन, विषुवत रेखा पर सूर्य का आगमन, एक राशि से दूसरी राशि में जाने वाले सूर्य के दिन, व्यतीपात, गजच्छाया नामक ज्योतिषसंधियाँ, चन्द्र और सूर्य ग्रहण तथा जब कर्मकर्ता के मन में तीव्र इच्छा का उदय (श्राद्ध करने के लिए) हो गया हो–यही काल श्राद्ध सम्पादन के हैं। मार्कण्डेय ने जोड़ा है कि तब श्राद्ध करना चाहिए जब व्यक्ति दु:स्वप्न देखे और सभी बुरे ग्रह उसके जन्म के नक्षत्र को प्रभावित कर दें। ग्रहण में श्राद्ध का उपयुक्त समय स्पर्शकाल है (अर्थात् जब ग्रहण का आरम्भ होता है); यह बात वृद्ध वसिष्ठ के एक श्लोक में आती है। ब्रह्मपुराण में याज्ञवल्क्य द्वारा सभी कालों एवं कुछ और कालों का वर्णन पाया जाता है। विष्णु धर्मसूत्र के मत से अमावस्या, तीन अष्टकाएँ एवं तीन अन्वष्टकाएँ, भाद्रपद के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी, जिस दिन चन्द्र मघा नक्षत्र में होता है, शरद एवं वसन्त श्राद्ध के लिए नित्य कालों के द्योतक हैं और जो भी व्यक्ति इन दिनों में श्राद्ध नहीं करता वह नरक में जाता है। विष्णु धर्मसूत्र का कहना है कि जब सूर्य एक राशि से दूसरा राशि में जाता है तो दोनों विषुवीय दिन, विशेषत: उत्तरायण एवं दक्षिणायन के दिन, व्यतीपात, कर्ता जन्म की राशि, पुत्रोत्पत्ति आदि के उत्सवों का काल–आदि काम्य काल हैं और इन अवसरों पर किया गया श्राद्ध (पितरों को) अनन्त आनन्द प्रदान करता है। कूर्म पुराण का कथन है कि काम्य श्राद्ध ब्राह्मणों के समय, सूर्य के अयनों के दिन एवं व्यतीपात पर करने चाहिए, तब वे (पितरों को) अपरिमित आनन्द देते हैं।
No comments:
Post a Comment