कुतप शब्द के आठ अर्थ हैं, जैसा कि स्मृतिच. एवं हेमाद्रि ने कहा है। यह शब्द 'कु' (निन्दित अर्थात् पाप) एवं 'तप' (जलाना) से बना
है। 'कुतप' के आठ अर्थ ये हैं–मध्याह्न, खड्गपात्र (गेंडे के सींग का बना
पात्र), नेपाल का कम्बल, रूपा (चाँदी), दर्भ, तिल, गाय एवं दौहित्र (कन्या
का पुत्र)। सामान्य नियम यह है कि श्राद्ध अपरान्ह्न में किया जाता है
(किन्तु यह नियम अमावास्या, महालय, अष्टका एवं अन्वष्टका के श्राद्धों के
लिए प्रयुक्त होता है), किन्तु वृद्धिश्राद्ध और आमश्राद्ध (जिनमें केवल
अन्न का ही अर्पण होता है) प्रात: काल में किये जाते हैं। इस विषय मे मेधा
तिथि ने एक स्मृतिवचन उद्धृत किया है। त्रिकाण्डमण्डन
में आया है कि यदि मुख्य काल में श्राद्ध करना सम्भव: न हो तो उसके
पश्चात् वाले गौण काल में उसे करना चाहिए, किन्तु कृत्य के मुख्य काल एवं
सामग्री संग्रहण के काम में प्रथम को ही वरीयता देनी चाहिए और सभी मुख्य
द्रव्यों को एकत्र करने के लिए गौण काल के अतिरिक्त अन्य कार्यों में उसकी
प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए।
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