श्राद्धकाल के लिए मनु द्वारा व्यवस्थित अपरान्ह्न के अर्थ के विषय में अपरार्क , हेमाद्रि एवं अन्य लेखकों तथा निबन्धों में विद्वत्तापूर्ण विवेचन उपस्थित किया गया
है। कई मत प्रकाशित किये गये हैं। कुछ लोगों के मत से मध्यान्ह्न के
उपरान्त दिन का शेषान्त अपरान्ह्न है। पूर्वाह्न शब्द ऋग्वेद
में आया है। इस कथन के आधार पर कहा है कि दिन को तीन भागों में बांट देने
पर अन्तिम भाग अपरान्ह्न कहा जाता है। तीसरा मत यह है कि पाँच भागों में
विभक्त दिन का चौथा भाग अपरान्ह्न है। इस मत को मानने वाले शतपथ ब्राह्मण
पर निर्भर हैं। दिन के पाँच भाग ये हैं–प्रात:, संगव, मध्यन्दिन
(मध्यान्ह्न), अपरान्ह्न एवं सायाह्न (सांय या अस्तगमन)। इनमें प्रथम तीन
स्पष्ट रूप से ऋग्वेद में उल्लिखित हैं। प्रजापतिस्मृति में आया है कि इनमें प्रत्येक भाग तीन मुहूर्तों तक रहता है।
इसने आगे कहा है कि कुतप सूर्योदय के उपरान्त आठवाँ मुहूर्त है और श्राद्ध
को कुतप में आरम्भ करना चाहिए तथा उसे रौहिण मुहूर्त के आगे नहीं ले जाना
चाहिए। श्राद्ध के लिए पाँच मुहूर्त (आठवें से बारहवें तक) अधिकतम योग्य
काल हैं।
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