श्राद्ध-कर्म में पके हुए चावल, दूध और तिल को मिश्रित करके जो पिण्ड
बनाते हैं, उसे 'सपिण्डीकरण' कहते हैं। पिण्ड का अर्थ है शरीर। यह एक
पारंपरिक विश्वास है, जिसे विज्ञान भी मानता है कि हर पीढी के भीतर मातृकुल
तथा पितृकुल दोनों में पहले की पीढियों के समन्वित 'गुणसूत्र' उपस्थित
होते हैं। चावल के पिण्ड जो पिता, दादा, परदादा और पितामह के शरीरों का
प्रतीक हैं, आपस में मिलकर फिर अलग बाँटते हैं। यह प्रतीकात्मक अनुष्ठान
जिन जिन लोगों के गुणसूत्र (जीन्स) श्राद्ध करने वाले की अपनी देह में हैं,
उनकी तृप्ति के लिए होता है। इस पिण्ड को गाय-कौओं को देने से पहले
पिण्डदान करने वाला सूँघता भी है। हमारे देश में सूंघना यानी कि आधा भोजन
करना माना जाता है। इस प्रकार श्राद्ध करने वाला पिण्डदान से पहले अपने
पितरों की उपस्थिति को ख़ुद अपने भीतर भी ग्रहण करता है।
यदि तीर्थ श्राद्ध में, पितृपक्ष में से एक से अधिक पितरों की शान्ति के
लिए पिण्ड अपिर्त करने हों, तो नीचे लिखे वाक्य में पितरों के नाम-गोत्र
आदि जोड़ते हुए वाञ्छित संख्या में पिण्डदान किये जा सकते हैं। ...........
गोत्रस्य अस्मद् ....... नाम्नो, अक्षयतृप्त्यथरँ इदं पिण्डं तस्मै स्वधा॥
पिण्ड समपर्ण के बाद पिण्डों पर क्रमशः दूध, दही और मधु चढ़ाकर पितरों से
तृप्ति की प्राथर्ना की जाती है ।
ॐ मधु नक्तमुतोषसो, मधुमत्पाथिर्व रजः। मधु द्यौरस्तु नः पिता।
ॐ मधुमान्नो वनस्पतिर, मधुमाँ२ऽ अस्तु सूयर्:। माध्वीगार्वो भवन्तु नः। -13.27-29
पिण्डदान
पिण्ड दाहिने हाथ में लिया जाए। मन्त्र के साथ पितृतीथर् मुद्रा से दक्षिणाभिमुख होकर पिण्ड किसी थाली या पत्तल में क्रमशः स्थापित करें-क्रमांक | पिण्ड | श्लोक |
---|---|---|
1 | प्रथम पिण्ड देवताओं के निमित्त- |
ॐ उदीरतामवर उत्परास, ऽउन्मध्यमाः पितरः सोम्यासः।
असुं यऽईयुरवृका ऋतज्ञाः, ते नोऽवन्तु पितरो हवेषु।- 19.49 |
2 | दूसरा पिण्ड ऋषियों के निमित्त- |
ॐ अंगिरसो नः पितरो नवग्वा, अथवार्णो भृगवः सोम्यासः।
तेषां वय सुमतौ यज्ञियानाम्, अपि भद्रे सौमनसे स्याम॥ - 19.50 |
3 | तीसरा पिण्ड दिव्य मानवों के निमित्त- |
ॐ आयन्तु नः पितरः सोम्यासः, अग्निष्वात्ताः पथिभिदेर्वयानैः।
अस्मिन्यज्ञे स्वधया मदन्तः, अधिब्रवन्तु तेऽवन्त्वस्मान्॥- 19.58 |
4 | चौथा पिण्ड दिव्य पितरों के निमित्त- |
ॐ ऊजरँ वहन्तीरमृतं घृतं, पयः कीलालं परिस्रुत्।
स्वधास्थ तपर्यत मे पितृन्॥ - 2.34 |
5 | पाँचवाँ पिण्ड यम के निमित्त- |
ॐ पितृव्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः, पितामहेभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः, प्रपितामहेभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः।
अक्षन्पितरोऽमीमदन्त, पितरोऽतीतृपन्त पितरः, पितरः शुन्धध्वम्॥ - 19.36 |
6 | छठवाँ पिण्ड मनुष्य-पितरों के निमित्त- |
ॐ ये चेह पितरो ये च नेह, याँश्च विद्म याँ२ उ च न प्रविद्म।
त्वं वेत्थ यति ते जातवेदः, स्वधाभियर्ज्ञ सुकृतं जुषस्व॥ - 19.67 |
7 | सातवाँ पिण्ड मृतात्मा के निमित्त- |
ॐ नमो वः पितरो रसाय, नमो वः पितरः शोषाय, नमो वः पितरो जीवाय, नमो वः पितरः स्वधायै, नमो वः पितरो घोराय,
नमो वः पितरो मन्यवे, नमो वः पितरः पितरो, नमो वो गृहान्नः पितरो, दत्त सतो वः पितरो देष्मैतद्वः, पितरो वासऽआधत्त। - 2.32 |
8 | आठवाँ पिण्ड पुत्रदार रहितों के निमित्त- |
ॐ पितृवंशे मृता ये च, मातृवंशे तथैव च। गुरुश्वसुरबन्धूनां, ये चान्ये बान्धवाः स्मृताः॥
ये मे कुले लुप्तपिण्डाः, पुत्रदारविवजिर्ताः। तेषां पिण्डो मया दत्तो, ह्यक्षय्यमुपतिष्ठतु॥ |
9 | नौवाँ पिण्ड उच्छिन्न कुलवंश वालों के निमित्त- |
ॐ उच्छिन्नकुलवंशानां, येषां दाता कुले नहि।
धमर्पिण्डो मया दत्तो, ह्यक्षय्यमुपतिष्ठतु॥ |
10 | दसवाँ पिण्ड गभर्पात से मर जाने वालों के निमित्त- |
ॐ विरूपा आमगभार्श्च, ज्ञाताज्ञाताः कुले मम।
तेषां पिण्डो मया दत्तो, ह्यक्षय्यमुपतिष्ठतु॥ |
11 | ग्यारहवाँ पिण्ड इस जन्म या अन्य जन्म के बन्धुओं के निमित्त- |
ॐ अग्निदग्धाश्च ये जीवा, ये प्रदग्धाः कुले मम।
भूमौ दत्तेन तृप्यन्तु, धमर्पिण्डं ददाम्यहम्॥ |
12 | बारहवाँ पिण्ड इस जन्म या अन्य जन्म के बन्धुओं के निमित्त- |
ॐ ये बान्धवाऽ बान्धवा वा, ये ऽन्यजन्मनि बान्धवाः।
तेषां पिण्डो मया दत्तो, ह्यक्षय्यमुपतिष्ठतु॥ |
- निम्न मन्त्र पढ़ते हुए पिण्ड पर दूध दुहराएँ- ॐ पयः पृथिव्यां पयऽओषधीषु, पयो दिव्यन्तरिक्षे पयोधाः। पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु मह्यम्। -18.36
- पिण्डदाता निम्नांकित मन्त्रांश को दुहराएँ- ॐ दुग्धम्। दुग्धम्। दुग्धम्। तृप्यध्वम्। तृप्यध्वम्। तृप्यध्वम्॥
- निम्नांकित मन्त्र से पिण्ड पर दही चढ़ाएँ-
- पिण्डदाता निम्नांकित मन्त्रांश दुहराएँ-
- नीचे लिखे मन्त्रों साथ पिण्डों पर शहद चढ़ाएँ-
ॐ मधु नक्तमुतोषसो, मधुमत्पाथिर्व रजः। मधु द्यौरस्तु नः पिता।
ॐ मधुमान्नो वनस्पतिर, मधुमाँ२ऽ अस्तु सूयर्:। माध्वीगार्वो भवन्तु नः। -13.27-29
- पिण्डदानकर्त्ता निम्नांकित मन्त्रांश को दुहराएँ-
No comments:
Post a Comment