गोभिलगृह्यसूत्र में अन्वाहार्य नामक एक अन्य श्राद्ध का उल्लेख हुआ है जो कि पिण्डपितृयज्ञ उपरान्त उसी दिन सम्पादित होता है। शांखायन गृह्यसूत्र ने पिण्डपितृयज्ञ से पृथक् मासिक श्राद्ध की चर्चा की है। मनु
का कथन है–'पितृयज्ञ (अर्थात् पिण्डपितृयज्ञ) के सम्पादन के उपरान्त वह
ब्राह्मण जो अग्निहोत्री अर्थात् आहिताग्नि है, प्रति मास उसे अमावास्या के
दिन पिण्डान्वाहार्यक श्राद्ध करना चाहिए। बुध लोक इस मासिक श्राद्ध को
अन्वाहाय कहते हैं और यह निम्नलिखित अनुमोदित प्रकारों के साथ बड़ी सावधानी
से अवश्य सम्पादित करना चाहिए। इससे प्रकट होता है कि आहिताग्नि को
श्रौताग्नि में पिण्डपितृयज्ञ करना होता था और उसी दिन उसके उपरान्त एक
अन्य श्राद्ध करना पड़ता था। जो लोग श्रौताग्नि नहीं रखते थे, उन्हें
अमावास्या के दिन गृह्यग्नियों में पिण्डान्वाहार्यक (या केवल अन्वाहार्य)
नामक श्राद्ध करना होता था और उन्हें स्मार्त अग्नि में पिण्डपितृयज्ञ भी
करना पड़ता था। आजकल, जैसा कि खोज से पता चला है, अधिकांश में अग्निहोत्री
पिण्डपितृयज्ञ नहीं करते, या करते भी हो तो वर्ष में केवल एक बार और
पिण्डान्यावाहार्यक श्राद्ध तो कोई करता ही नहीं। यह भी ज्ञातव्य है कि
स्मार्त यज्ञों में अब कोई पशु-बलि नहीं होती, प्रत्युत उसके स्थान पर माष
(उर्द) का अर्पण होता है। अब कुछ आहिताग्नि भी ऐसे हैं, जो श्रौताग्नियों
में मांस नहीं अर्पित करते, प्रत्युत उसके स्थान पर पिष्ट पशु (आटे से बनी
पशुप्रतिमा) की आहुतियाँ देते हैं।
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