ब्रह्म पुराण के मत से श्राद्ध का वर्णन पाँच भागों में किया जाना चाहिए। कैसे, कहाँ,
कब, किसके द्वारा एवं किन सामग्रियों द्वारा। किन्तु इन पाँच प्रकारों के
विषय में लिखने के पूर्व में हमें 'पितर' शब्द की अन्तर्निहित आदकालीन
विचारधारा पर प्रकाश डाल लेना चाहिए। हमें यह देखना है कि अत्यन्त प्राचीन
काल में (जहाँ तक हमें साहित्य प्रकाश मिल पाता है) इस शब्द के विषय में
क्या दृष्टिकोण था और इसकी क्या महत्ता थी।
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