Monday, September 12, 2011

युगादि एवं मन्वादि

अग्नि पुराण  में आया है कि वे श्राद्ध जो किसी तीर्थ या युगादि एवं मन्वादि दिनों में किये जाते हैं (पितरों को) अक्षय संतुष्टि देते हैं। विष्णुपुराण , मत्स्य पुराण , पद्म पुराण  , वराह पुराण , प्रजापतिस्मृति एवं स्कन्द पुराण  का कथन है कि वैशाख शुक्ल तृतीया, कार्तिक शुक्ल नवमी, भाद्रपद कृष्ण त्रयोदशी एवं माघ की अमावास्या युगादि तिथियाँ (अर्थात् चारों युगों के प्रथम दिन) कही जाती है। मत्स्य पुराण , अग्नि पुराण , सौरपुराण , पद्म पुराण ने 14 मनुओं (या मन्वन्तरों) की प्रथम तिथियाँ इस प्रकार दी हैं–आश्विन शुक्ल नवमी, कार्तिक शुक्ल द्वादशी, चैत्र एवं भाद्रपद शुक्ल तृतीया, फाल्गुन की अमावास्या, पौष शुक्ल एकादशी, आषाढ़ शुक्ल दशमी एवं माघ शुक्ल सप्तमी, श्रावण कृष्ण अष्टमी, आषाढ़, कार्तिक, फाल्गुन, चैत्र एवं ज्येष्ठ की पूर्णिमा। मत्स्यपुराण की सूची स्मृतिच. , कृत्यरत्नाकर , परा. मा. एवं मदनपारिजात  में उद्धृत हैं। स्कन्द पुराण एवं स्मृत्यर्थसार  में क्रम कुछ भिन्न है। स्कन्दपुराण (नागर खण्ड) में श्वेत से लेकर तीन कल्पों की प्रथम तिथियाँ श्राद्ध के लिए उपयुक्त ठहरायी गयी हैं।

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