शतपथ ब्राह्मण एवं तैत्तिरीय आरण्यक ने आगे कहा है कि वह आह्विक यज्ञ जिसमें पितरों को स्वधा (भोजन) एवं जल दिया जाता है, पितृयज्ञ कहलाता है। मनु ने पितृयज्ञ को तर्पण (जल से पूर्वजों की संतुष्टि) करना कहा है। मनु ने व्यवस्था दी है कि प्रत्येक गृहस्थ को प्रतिदिन भोजन या जल या दूध, मूल एवं फल के साथ श्राद्ध करना चाहिए और पितरों को संतोष देना चाहिए। प्रारम्भिक रूप में श्राद्ध पितरों के लिए अमावस्या के दिन किया जाता था। अमावस्या दो प्रकार की होती है; विनोवाली एवं कुहू। आहिताग्नि (अग्निहोत्री) सिनीवाली में श्राद्ध करते हैं, तथा इनसे भिन्न एवं शूद्र लोग कुहू अमावस्या में श्राद्ध करते हैं।
श्राद्धों का पितरों के साथ अटूट संबंध है। पितरों के बिना श्राद्ध की कल्पना नहीं की जा सकती। श्राद्ध पितरों को आहार पहुँचाने का माध्यम मात्र है। मृत व्यक्ति के लिए जो श्रद्धायुक्त होकर तर्पण, पिण्ड, दानादि किया जाता है, उसे श्राद्ध कहा जाता है और जिस 'मृत व्यक्ति' के एक वर्ष तक के सभी और्ध्व दैहिक क्रिया कर्म संपन्न हो जायें, उसी की 'पितर' संज्ञा हो जाती है।
Monday, September 12, 2011
आह्विक यज्ञ
शतपथ ब्राह्मण एवं तैत्तिरीय आरण्यक ने आगे कहा है कि वह आह्विक यज्ञ जिसमें पितरों को स्वधा (भोजन) एवं जल दिया जाता है, पितृयज्ञ कहलाता है। मनु ने पितृयज्ञ को तर्पण (जल से पूर्वजों की संतुष्टि) करना कहा है। मनु ने व्यवस्था दी है कि प्रत्येक गृहस्थ को प्रतिदिन भोजन या जल या दूध, मूल एवं फल के साथ श्राद्ध करना चाहिए और पितरों को संतोष देना चाहिए। प्रारम्भिक रूप में श्राद्ध पितरों के लिए अमावस्या के दिन किया जाता था। अमावस्या दो प्रकार की होती है; विनोवाली एवं कुहू। आहिताग्नि (अग्निहोत्री) सिनीवाली में श्राद्ध करते हैं, तथा इनसे भिन्न एवं शूद्र लोग कुहू अमावस्या में श्राद्ध करते हैं।
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