विष्णुधर्मसूत्र द्वारा वर्णित दिनों में किये जाने वाले श्राद्ध नैमित्तिक हैं और जो विशिष्ट तिथियों एवं सप्ताह के दिनों में कुछ निश्चित इच्छाओं की पूर्ति के लिए किये जाते हैं, वे काम्य श्राद्ध कहे जाते हैं। परा. मा. के मत से नित्य कर्मों का सम्पादन संस्कारक (जो कि मन को पवित्र बना दे और उसे शुभ कर्मों की ओर प्रेरित करे) कहा जाता है, किन्तु कुछ परिस्थितियों में यह अप्रत्यक्ष अन्तर्हित रहस्य (परम तत्त्व) की जानकारी की अभिकांक्षा भी उत्पन्न करता है। जैमिनिय ने सिद्ध किया है कि नित्य कर्म (यथा, अग्निहोत्र, दर्श पूर्णमास याग) अवश्य करने चाहिए, भले ही कर्ता उनके कुछ उपकृत्यों को करने में असमर्थ हो; उन्होंने पुन: व्यवस्था दी है कि काम्य कृत्यों के सभी भाग सम्पादित होने चाहिए और यदि कर्ता सोचता है कि वह सबका सम्पादन करने में असमर्थ है तो उसे काम्य कृत्य करने ही नहीं चाहिए।
श्राद्धों का पितरों के साथ अटूट संबंध है। पितरों के बिना श्राद्ध की कल्पना नहीं की जा सकती। श्राद्ध पितरों को आहार पहुँचाने का माध्यम मात्र है। मृत व्यक्ति के लिए जो श्रद्धायुक्त होकर तर्पण, पिण्ड, दानादि किया जाता है, उसे श्राद्ध कहा जाता है और जिस 'मृत व्यक्ति' के एक वर्ष तक के सभी और्ध्व दैहिक क्रिया कर्म संपन्न हो जायें, उसी की 'पितर' संज्ञा हो जाती है।
Monday, September 12, 2011
वर्णित दिनों में होने वाले श्राद्ध
विष्णुधर्मसूत्र द्वारा वर्णित दिनों में किये जाने वाले श्राद्ध नैमित्तिक हैं और जो विशिष्ट तिथियों एवं सप्ताह के दिनों में कुछ निश्चित इच्छाओं की पूर्ति के लिए किये जाते हैं, वे काम्य श्राद्ध कहे जाते हैं। परा. मा. के मत से नित्य कर्मों का सम्पादन संस्कारक (जो कि मन को पवित्र बना दे और उसे शुभ कर्मों की ओर प्रेरित करे) कहा जाता है, किन्तु कुछ परिस्थितियों में यह अप्रत्यक्ष अन्तर्हित रहस्य (परम तत्त्व) की जानकारी की अभिकांक्षा भी उत्पन्न करता है। जैमिनिय ने सिद्ध किया है कि नित्य कर्म (यथा, अग्निहोत्र, दर्श पूर्णमास याग) अवश्य करने चाहिए, भले ही कर्ता उनके कुछ उपकृत्यों को करने में असमर्थ हो; उन्होंने पुन: व्यवस्था दी है कि काम्य कृत्यों के सभी भाग सम्पादित होने चाहिए और यदि कर्ता सोचता है कि वह सबका सम्पादन करने में असमर्थ है तो उसे काम्य कृत्य करने ही नहीं चाहिए।
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